Tuesday, June 11, 2013

गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करनेवाले परिवार के बच्चों को गुणवतापूर्ण षिक्षा देने की गरज से लाया गया है आरटीई 2009

Jharkhand में निःषुल्क एवं अनिवार्य षिक्षा अधिकार अधिनियम एक अप्रैल 2010 से लागू हो गया है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करनेवाले परिवार के बच्चों को गुणवतापूर्ण षिक्षा देने की गरज से यह अधिनियम लाया गया है। जिसे निःषुल्क एवं अनिवार्य षिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के नाम से जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि षिक्षा को मौलिक अधिकार बने हुए तीन साल से ज्यादा वक्त बीच चुका है। लेकिन, अभी भी यह अधिकार जमीन पर उतरता दिख नहीं रहा है। और तो और, आरटीई के मानकों के अनुरूप देष के 95 फीसदी स्कूलों में कोई संरचना नहीं है। कानून लागू होने के बाद कुछ प्रगति जरूर हुई है पर यह काफी नहीं है। इस कानून के मुताबिक हर स्कूल में जितनी कक्षा उतने षिक्षक और प्रधानाध्यापक के लिए कार्यालय होना चाहिए। साथ ही, स्कूल का भवन सभी मौसम के लिए उपयुक्त होना चाहिए। कानून के मुताबिक स्कूल में छात्र और छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय, एक खेल का मैदान, समुचित पाठ्य सामग्री से युक्त एक पुस्तकालय, बिजली, कम्प्यूटर इत्यादि की सुविधा इत्यादि होनी चाहिए। इसके लिए जिला षिक्षा अधीक्षक को नोडल पदाधिकारी बनाया गया है। लेकिन, उनके स्तर से अभी तक इसके अनुपालन के लिए कोई खास कदम नहीं उठाया गया है। ग्राम षिक्षा समिति को भंग किये बगैर जैसे-तैसे और आनन-फानन में लगभग सभी विधालयों में स्कूल प्रबंधन समिति का गठन जरूर कर लिया गया है। इस समिति के सदस्यों का कार्यषाला के जरिए उन्मुखीकरण भी लगभग सभी जिलों किया गया है। यह महज पैसे खर्च करने के उद्देष्य से किया गया। व्यवहार में अभी भी ग्राम षिक्षा समिति ही सक्रिय और विधालयों पर हावी है। सच्चाई यह भी है कि विधालय के प्रधानाध्यापक उक्त दोनों समितियों के चक्कर में पिसे जा रहे हैं।
आखिर इस परिस्थिति में सबको षिक्षा और समान षिक्षा का क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट ने 6 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य षिक्षा देने वाले षिक्षा अधिकार कानून को संवैधानिक रूप से वैध ठहरा कर सारे भ्रम को दूर कर दिया है। कोर्ट ने सरकारी, सहायता प्राप्त तथा बगैर सहायता के चलने वाले स्कूलों को भी गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित करने का आदेष दिया है, सिर्फ गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थानों को इससे मुक्त रखा गया है। इस फैसले के बाद अब प्राइवेट स्कूलों को गरीब तबके के बच्चों को अपने यहां दाखिला देना होगा। इसे एक बड़ी पहल कहा जा सकता है। इससे न सिर्फ गरीब बच्चों के लिए षिक्षा के दरवाजे खुलेंगे, बल्कि यह षिक्षा के क्षेत्र में मौजूद अमीर और गरीब के बीच की खाई एक हद तक मिटेगा। प्राइवेट स्कूल अभी भी इस कानून पर ऐतराज जताते हैं। जाहिर है मुनाफे के गणित पर चलने वाले निजी संस्थानों को यह फैसला आर्थिक रूप से नुकसानदेह लग रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस महत्वपूर्ण फैसले के माध्यम से प्राईवेट स्कूलों को सामाजिक जवाबदेही का भी एहसास कराया है। सभी को गुणात्मक षिक्षा मुहैया कराने के लिए यह कदम ही काफी नहीं है। इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार को कमर कसकर आगे आना होगा। इसके लिए स्कूलों में पर्याप्त संरचनाओं का बंदोवस्त करना पड़ेगा। हालांकि, इसके लिए समय बहुत कम है। कानून के मुताबिक 
- इन्द्रमणि साहू
                                                          

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