Tuesday, October 24, 2017

ढिवरा चुनने छोड अब स्कूल जायेंगे बच्चे........

Domchanch के Mica-mines area में बाल सभा.....ढिवरा चुनने छोड अब स्कूल जायेंगे यहां के बच्चे........

ग्राम योजना निर्माण को लेकर प्रशिक्षण .....

ग्राम योजना निर्माण को लेकर जनप्रतिनिधियों[ ग्राम प्रधानो एवं उत्प्रेरक साथियों के साथ एकदिवसीय प्रशिक्षण .....

योजना निर्माण के मसले पर विचार करती माइका-माइंस क्षेत्र की महिलाएं.....

सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनायों का लाभ कैसे मिले, आत्मनिर्भर व स्वाभिमानी कैसे बनें आदि मसलों पर विचार करती माइका-माइंस क्षेत्र Dhab अर्थात सांसद आदर्श ग्राम की महिलाएं.....

German TV के साथ समर्पण team

German TV के साथ समर्पण team in mica mines area of Koderma.....

वो सुबह हमीं से आयेगी .......

बीतेंगे कभी तो दिन आखिर, ये भूख और बेकारी के
 टूटेंगे कभी तो बुत आखिर, दौलत की इजारेदारी की
अब एक अनोखी दुनिया की, बुनियाद उठाई जायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी .......माइका-माइंस क्षेत्र में .......

डोमचांच के माइका माइंस एरिया में Childline की टीम

डोमचांच के माइका माइंस एरिया से बाल तस्करी पर अंकुश हेतु Childline एवं Samarpan की ओर से एक छोटी पहल.....

शनिपरब सांस्कृतिक कार्यक्रम में Samarpan के कलाकारों की शानदार प्रस्तुति

जिला प्रशासन कोडरमा की ओर से आयोजित शनिपरब सांस्कृतिक कार्यक्रम में Samarpan के कलाकारों की शानदार प्रस्तुति ......देर रात तक झूमते रहे दर्शक एवं श्रोतागण ......पदाधिकारियों ने दिया कलाकारों और संस्था को वधाई ....



Monday, October 23, 2017

ढिबरा चुनने छोड़ मगदल्नी किंडों ने खोला जनरल दुकान

शहरों की तरह गाँव की महिलाएँ भी स्वरोजगार करना चाहती हैं और आत्मबल व मनोबल बढ़ाना चाहती हैं। लेकिन, कुछ मजबूरियों के कारण वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाती हैं। कारण या तो पति का सर्पोट नहीं मिलना या फिर पूंजी का अभाव रहना आदि होता है। माइका-माइंस एरिया के ढोढाकोला पंचायत के चक गाँव की एक ऐसी ही महत्वाकांक्षी महिला है मगदल्नी किण्डों। वे आगे बढ़ना तो चाहती हैं पर पूंजी नहीं रहने के कारण उनकी चाहत अधूरी थी। धीरे-धीरे उन्होंने बचत करना प्रारंभ किया। थोड़ा पूंजी हो गया। उन्होंने सोचा गांव में दुकान नहीं है सो छोटा-मोटा एक दूकान खोलेंगे। फिर, उन्होंने samarpan के आर्थिक मदद से गांव में ही एक छोटा-मोटा राशन दुकान खोली । दिनभर वह या ढिबरा चुनने जंगल जाती थी, ठीकेदारों के हाथों शोषण होता था या यूं ही दिन भर बैठकर समय गुजारती थी से मुक्ति मिल गयी। जितना पैसा ढिबरा में कमाती थी, उतना या उससे कहीं ज्यादा पैसा आज अपनी दुकान से कमा रही है। वह अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दुकान में लगा रही है तो कुछ हिस्सा से घर चला रही है। इससे उनके पति भी खुश  हैं और गांव वाले भी। क्योंकि, अब छोटा-मोटा चीज या समान के लिए ढोढाकोला नहीं जाना पड़ता है। गाँव में महिला के द्वारा दुकान चलाना अपने आप में एक बड़ी बात है। इससे उनकी पहचान गांव में अलग बन रही है।
चक गाँव जाने के लिए मात्र एक कच्ची सड़क है। यहां करीब 100 लोगों की एक छोटी सी बस्ती है। यहां एक भी दुकान नहीं है। ढोढाकोला के सप्ताहिक बाजार में ही लोग अपने दैनिक जरूरतों की खरीदारी करते थे। यदि किसी कारण समान खत्म हो जाय या फिर जरूरत पड़ जाय तो काफी फजीहत होती थी। यातायात के साधन एवं नेटर्वक न होने के कारण भी लोगों को परेशनियाँ होती थी। जिससे लोगों को आज निजाद मिल गया। खाने-पीन की चीजों से लेकर पाउडर, क्रीम, साग-सब्जी आदि सब गांव में ही उपलब्ध है। पसिया गांव जो 2 किमी की दूरी पर है। वहाँ से भी लोग आते है और अपने दैनिक समानों को इन्हीं के दुकान से खरीदकर ले जाते हैं। इस प्रक्रिया से आज न सिर्फ मगदल्नी किंडो खुश हैं बल्कि गांव के हर कोई खुश  हैं।
उत्तम कुमार