Sunday, April 10, 2016

हमें गर्व है अपनी सभ्यता और संस्कृति पर ..........

झारखण्ड यानी 'झार' या 'झाड़' जो स्थानीय रूप में वन का पर्याय है और 'खण्ड' यानी टुकड़े से मिलकर बना है। अपने नाम के अनुरुप यह मूलतः एक वन प्रदेश है जो झारखंड आंदोलन के फलस्वरूप सृजित हुआ। प्रचुर मात्रा में खनिज की उपलबध्ता के कारण इसे भारत का 'रूर' भी कहा जाता है। 
कोडरमा का इलाका इस मानकों से अछूता नहीं है।  समर्पण विगत एक साल से ऐसे ही इलाको में खाशकर डोमचांच के माइका माइंस व जंगल क्षेत्र में कार्य करना एवं ऐसे इलाकों से कुछ सीखना प्रारंभ किया है।  जहाँ बुनियादी सुविधाओं का घोर आभाव है।  ढोदाकोला, बंगाखलार, ढाब, सपही जैसे पंचायतों के गावों में हम जैसे लोगो को एक दिन बिताना कठिन है।  यहाँ के लोग लोकतंत्र से परे भले जरूर हों, पर अपनी संस्कृति और सभ्यता से पूरी तरह लब्बोलुआब है। यूँ तो, झारखंड क्षेत्र विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों एवं धर्मों का संगम क्षेत्र कहा जाता है। जो इस इलाको में भी देखने को मिलता है।  
2 दिन पहले जब हम अपने साथियों क्रमश आशुतोष और सन्नी के साथ गावं गए तो कई नए अनुभव हुवे. सांस्कृतिक परम्परा और समाज–संस्कृति पर विचार पर चर्चा किया। संस्कृति और लोकतंत्र में क्या अंतर है..... हुनर और ज्ञान क्या है ....   इसे जाना।सरहुल पर्व को लेकर चर्चा किया। आज मरियमपुर में आयोजित जिलास्तरीय सरहुल महोत्सव में उस इलाकों से काफी संख्या में लोग आये और झारखंडी होने का परिचय दिया. हमें गर्व है अपनी सभ्यता और संस्कृति पर ................