Saturday, August 30, 2014

विज्ञान और तकनीक के सहारे किसान कर रहा है तरक्की

समर्पण के द्वारा गम्हरबाद गांव में गठित नवयुवक किसान क्लब का कार्यालय का उद्घाटन उपप्रमुख श्यामदेव यादव ने किया। वहीं, क्लब के सदस्यों का आधारस्तरीय उन्मुखीकरण प्रषिक्षण भी दिया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपप्रमुख श्यामदेव यादव ने कहा कि आज लोग यदि भूखे नहीं मर रहे हैं तो इसका देन कृषि क्षेत्र में विज्ञान व तकनीक का प्रयोग होना है। लेकिन, हर गांव में अभी तक यह तकनीक नहीं आ सका है। समर्पण का यह प्रयास इसी दिषा में है। उन्होंने कहा कि किसान अन्नदाता है।

हमारा अस्तित्व किसानों के बदौलत ही है। लेकिन, आज सबसे ज्यादा उपेक्षित किसान ही हैं। कृषि एक्सपर्ट सहदेव सिंह ने गांव के किसानों को कोसते हुए कहा कि दुनिया बदली मगर गांव के किसान नहीं बदले हैं, यह बड़ी दुर्भाग्य की बात है। उन्होंने कहा कि हम कैसे कम पूंजी, कम पानी, कम संसाधन, कम परिश्रम में ज्यादा फसल उगायेंगे, इस तकनीक को शीघ्र सीखने आवष्यकता है। ज्ञान विज्ञान समिति के सचिव जयप्रकाष यादव ने कहा कि किसान क्लब यदि अच्छा काम किया तो भुख से एक भी आदमी नहीं मरेगा और न गांव से कोई पलायन करेगा। उन्होंने कहा कि जिन्होंने सरकार की योजनाओं को गांव तक लाने एवं सामुहिक विकास के बारे में सोचा है, हम समझते हैं वहीं गांव षिक्षित है।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में क्लब के सदस्यों को क्लब के संचालन के तरीके, कल्ब के रख-रखाव, लेखा-जोखा, पत्राचार एवं अन्य वितीय संस्थानों के साथ जुड़ाव आदि बिन्दुओं पर प्रषिक्षित किया गया। कार्यक्रम में दर्जनों किसानों ने हिस्सा लिया।

Monday, August 11, 2014

कोडरमा के बच्चों के लिए नहीं हो रहा है कोई सार्थक पहल, आंगनबाड़ी का संचालन भगवान भरोसे

-इन्द्रमणि साहू 
समेकित बाल विकास परियोजना के तहत 0-6 वर्ष के बच्चों के संर्पूण विकास, किषोरियों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को स्वस्थ रखने एवं समुचित पोषण आहार से युक्त करने की जिम्मेवारी सीडीपीओ की होती है। शुरूआती बालपन की देखरेख और पोषण संबंधी सरकार के सभी कार्यक्रम इसी के तहत संचालित होते हैं। बच्चों का ग्रोथ माॅनिटरिंग, कुपोषित बच्चों को चिन्हित कर उन्हें एमटीसी रेफर करना, सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में बाल सुलभ शौचालय की व्यवस्था करना, जनसंख्या के हिसाब से आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना कराना बाल विकास परियोजना की जबाबदेही होती है। लेकिन, कोडरमा का हाल ही कुछ ओर है। यहां ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। आरटीआई एक्टिविस्ट विजय यादव (Koderma) ने एक बार फिर बाल विकास परियोजना पदाधिकारी कोडरमा पर आधा-अधूरा सूचना देने का आरोप लगाया है। उन्होंने जिला समाज कल्याण पदाधिकारी मंजू रानी स्वांसी को एक पत्र लिखकर पूरी व सही सूचना दिलवाने की अपील की है। बताते चलें कि श्री यादव ने पिछले दिनों बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, कोडरमा से सूचनाधिकार अधिनियम 2005 के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों पर वजन मषीन, कुपोषित बच्चों की संख्या, आंगनबाड़ी केंद्रों में बाल सुलभ शौचालय की उपलब्धता व स्थिति, भाड़े पर चल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों सूची, जनसंख्या के आधार पर और कितने आंगनबाड़ी केंद्रों की आवष्यकता संबंधी जानकारी मांग किया था। फिलहाल, जो सूचना मिला है वह अपने आप में चैकाने वाला है। वहीं कोडरमा के बच्चों के प्रति विभाग की सक्रियता का पोल खोलता है। 
कोडरमा में नहीं हो रहा है ग्रोथ माॅनिटरिंग- आंगनबाड़ी की 6 सेवाओं में से नियमित स्वास्थ्य जांच भी शामिल है। इसके तहत 6 साल के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं की आंगनबाड़ी केंद्रों तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों द्वारा फ्री में नियमित स्वास्थ्य जांच एवं जरूरी दवाएं दी जानी है। नियमित स्वास्थ्य जांच के दौरान स्वास्थ्य कार्ड भी बनाया जाता है। इसमें हर बार वजन लेकर उसे अंकित किया जाता है। इस दौरान अगर किसी बच्चे में पोषण की कमी पायी जाती है या उसे बीमार पाया जाता है, तो उसे रेफरल सेवा दी जाती है। इसमें उसे अतिरिक्त पोषण तत्व, दवा आदि दिये जाने का प्रावधान है। जरूरत पड़ने पर उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या उप स्वास्थ्य केंद्र भेजा जाता है। ताकि, उसे हर हाल में कुपोषण और बीमारी से बचाया जा सके। लेकिन, कोडरमा में यह व्यवस्था पूरी तरी लचर हे। यहां कुल 168 आंगनबाड़ी केंद्र है। जिसमें से 9 जुलाई, 2007 को 117 आंगनबाड़ी केंद्रों को वजन मषीन उपलब्ध कराया गया था। फिलहाल, 11 आंगनबाड़ी केंद्रों को छोड़कर 106 आंगनबाड़ी केंद्रों पर वर्षो से वजन मषीन खराब है। शेष 51 आंगनबाड़ी केंद्र को आज तक वजन मषीन उपलब्ध ही नहीं कराया गया है। विभाग को इन सभी बातों की जानकारी है लेकिन, विभाग द्वारा नये वजन मषीन उपलब्ध कराने को लेकर कोई कार्यवाही नहीं की है और न ही वजन मषीन को लेकर कभी उच्चाधिकारियों को कोई पत्र निर्गत किया गया है। ऐसे में बच्चों को ग्रोथ माॅनिटरिंग भला कैसे संभव है। पिछले दिनों राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्या डा0 सुनिता कत्यायन के कोडरमा विजिट कार्यक्रम में भी यह मामला उठा था और उन्होंने संबंधित अधिकारियों को निदेष दिया था कि सभी केद्रों पर शीघ्र वजन मषीन उपलब्ध कराते हुए तरीके से आंगनबाड़ी का संचालन कराया जाय। लेकिन, निदेष का कोई प्रभाव आला-अधिकारियों पर नहीं पड़ा। 
सीडीपीओ कार्यालय में नहीं है कुपोषित बच्चों की अपडेट सूचीः वृन्दा निवासी विजय यादव ने कोडरमा प्रखंड के कुपोषित बच्चों की सूची वर्ष 2012 से लेकर अब तक की मांग की लेकिन, उन्हें 51 बच्चों को छोड़कर जो सूची उपलब्ध कराया गया है वह 2001 का है। 51 बच्चों की सूची में भी 20 बच्चों के माता-पिता का नाम नहीं है और न ही बच्चा का उम्र। ऐसे में सिर्फ बच्चों के नाम से स्पष्ट है कि बच्चा का नाम यूं ही लिख लिया गया है। 
कोडरमा में एक भी केंद्र में नहीं है बाल सुलभ शौचालयः नियमानुसार सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर बाल सुलभ शौचालय होना चाहिए। लेकिन, कोडरमा के एक भी आंगनबाड़ी केंद्र पर बाल सुलभ शौचालय नहीं है। सीडीपीओ को इस बात का पता होने के बाद भी उन्होंने अभी तक बाल सुलभ शौचालय के लिए कभी कोई पत्राचार नहीं किया है। ऐसे में, बाल अधिकारों और बाल स्वास्थ्य के प्रति अधिकारी कितने गंभीर हैं इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। 
बच्चों के अनुपात में और कितने आंगनबाड़ी केंद्र की आवष्यकता है इसकी भी सूचना नहीं है सीडीपीओ कोः सुप्रीम कोर्ट के आदेषानुसार सभी आंगनबाड़ी केंद्रों का अपना भवन एवं सभी केंद्र सभी सुविधाओं से युक्त होना चाहिए। लेकिन, कोडरमा में ऐसा कुछ नहीं है। अभी भी यहां 168 आंगनबाड़ी केद्रों में से 48 केंद्र भाड़े पर संचालित है और 51 केंद्र का अपना भवन नहीं है। और तो और, जनसंख्या और बच्चों के अनुपात एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेषानुसार ओर कितने आंगनबाड़ी केंद्र की आवष्यकता है इसकी भी सूचना सीडीपीओ कार्यालय में नहीं है। सिर्फ आठ नये केंद्रों का प्रस्ताव स्वीकृति हेतु भेजा गया है। इससे स्पष्ट है कि कोडरमा में बाल पंजी का निर्माण या बाल सर्वेक्षण नहीं किया जा रहा हैं। 
इन सभी कमियों के बावजूद यदि यहां आंगनबाड़ी संचालित है तो संबंधित आला-अधिकारियों पर उंगली उठना स्वाभाविक है। 
आंगनबाड़ी के संचालन को बेहतर करने की मांग
इधर समर्पण के सचिव इन्द्रमणि साहू ने आंगनबाड़ी की सभी 6 सेवाओं को दुरूस्त करने एवं आंगनबाड़ी के संचालन को बेहतर करने की मांग उपायुक्त एवं मंत्री अन्नपुर्णा देवी से की है।  

Saturday, August 2, 2014

डोमचांच के जंगल क्षेत्र में बसे गांवों में व्यापक जागरूकता, संगठन निर्माण और एडभोकेषी कार्यक्रम चलाने की सख्त जरूरत

पिछले दिनों बंगलोर से मुक्त कराये गये 9 बच्चों को पुर्नवासित किये जाने एवं बाल व्यापार से जुड़े मामलों को लेकर हमारा follow up जारी है। कुछ तथ्य इस प्रकार हैः
 Ø जिला कोडरमा में बाल कल्याण समिति दिनांक 09.03.2013 से सक्रिय नहीं है। गठन हेतु संबंधित पदाधिकारियों/उच्चाधिकारियों को ज्ञांपन सौंपा गया है।
 Ø  बहुत दवाब बनाने के बाद जिला प्रषासन की टीम बंगलोर से बच्चों को लेकर 7 मई, 2014 को लौटी।
 Ø  वापस लाये गये सभी बच्चों का पुनर्वास किये गये बगैर अभिभावकों को सौंप दिया गया।
 Ø  बच्चों का पुनर्वास की व्यवस्था नहीं होने से संभावना है कि ये बच्चे फिर बाहर काम करने चले जायें। जिससे उनका बचपन और बाल अधिकारों का खतरा है। इसी को ध्यान में रखते हुए एवं बच्चों को प्रति जिला प्रषासन को जबाबदेह बनाने हेतु कई बार संबंधित पदाधिकारियों (जिला समाज कल्याण पदाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी, बाल संरक्षण पदाधिकारी, डोमचांच थाना, उपायुक्त कोडरमा) से वार्ता की गयी। कोई विषेष पहल सक्रियता नहीं होते देख 12 मई, 2014 को सूचनाधिकार का प्रयोग किया गया।
 Ø  सूचनाधिकार का आवेदन जिला समाज कल्याण पदाधिकारी को मिलते ही उनमें तिलमिलाहट आई और उन्होंने दिनांक 15 मई, 2014 को उपायुक्त, कोडरमा से भेंट कर सूचनाधिकार के तहत पूछे गये प्रष्नों को लेकर वार्ता किया। 
 Ø  फिर आनन-फानन में 21 मई, 2014 को उपायुक्त एवं जिला समाज कल्याण पदाधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर से डोमचांच के बीडीओ को पत्रांक 265/21 मई, 2014 के द्वारा निदेष जारी किया कि बंगलोर से वापस लाये गये बच्चों के माता-पिता को सरकारी लाभ से लाभान्वित करें। वहीं पत्रांक 266/21 मई, 2014 के द्वारा जिला षिक्षा अधीक्षक, कोडरमा को निदेष दिया कि बंगलोर से वापस लाये गये बाल मजदूरों को सरकारी स्कूलों में नामांकन करायें ताकि षिक्षा अधिकार कानून का पालन किया जा सके। 
 Ø  हमलोग फिर जिला षिक्षा अधीक्षक एवं प्रखंड विकास पदाधिकारी से जानकारी मांगें हैं कि उन्होंने उक्त आदेष/निदेष के आलोक में क्या कदम उठाया। बच्चें कौन सा स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं, बच्चे नियमित स्कूल रहे हैं या नहीं, बच्चों के माता-पिता को किस योजनाओं सरकारी लाभ से जोड़ा गया।
 Ø  डोमचांच थाना में प्रतिनियुक्त बाल संरक्षण पदाधिकारी से भी जानकारी मांगे हैं कि उन्होंने इस मसले को लेकर क्या-क्या कदम उठाया है।
लेकिन, जब मैं दिनांक 25 जुलाई, 2014 को अपने सहयोगी साथी तुलसी कुमार साव के साथ बच्चों से मिलने गांव गया और वर्तमान हालात टटोलने की कोषिष की तो मामला कुछ और ही निकला। जो कुछ इस प्रकार हैः संबंधित तथ्यों पर आधारित फोटोग्राफ्स संलग्न है।
1.  दिनेष कुमार तुरी पिता सोमर तुरी का नामांकन 0 0 वि0 तुरियाटोला, बंगाखलार, डोमचांच में 5वीं कक्षा में है। पिछले 9 माह से दिनेष बंगलौर में कार्य कर रहा था, समर्पण एवं जिला प्रषासन के सहयोग से उन्हें 7 मई 2014 को वापस लाया गया है। लेकिन, ताज्जूब की बात यह है कि विधालय रजिस्टर के मुताबिक दिनेष विधालय में एक दिन भी गैर हाजिर नहीं है। रोज का हाजिरी बना पाया गया। 

2. फिलहाल, दिनेष के जांघ में घाव हो गया है। जब से बंगलौर से आया है स्कूल नहीं गया है और ही उन्हें स्कूल जाने के लिए किसी ने प्रेरित किया है। एसएमसी के अध्यक्ष श्री रामदेव तुरी ने कहा कि हम इन्हें रोज स्कूल जाने के लिए बोलते हैं पर सुनता ही नहीं है।
3. उक्त विधालय में कुल नामांकित बच्चों की संख्या 91 हैं पर दिनांक 25 जुलाई 2014 को उपस्थिति 30 बच्चों की थी। जिसमें ज्यादातर बच्चे आंगनबाड़ी  के थे। फोटो देखकर भी आकलन किया जा सकता है।
4. उक्त विधालय का दूसरा कक्ष लकड़ी से भरा पाया गया। 
5. उक्त विधालय को 6 साल पहले अतिरिक्त कमरा निर्माण के लिए आवंटन भेजा गया है। Building बना भी पर आधा-अधूरा और आवंटन की राषि समाप्त हो गया। Building कब पूरा होगा और कब से पढ़ाई शुरू होगा इसकी खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं। फोटो देखकर भी आकलन किया जा सकता है। 
6.  आज तक BEEO या अन्य कोई अधिकारी का आगमन इस विधालय में नहीं हुआ है।
7. दिनेष के पास स्कूल ड्रेस है और ही किताबें स्कूल जायें भी तो कैसे? लेकिन, षिक्षक बताते हैं कि हमने उसे ड्रेस दिया है और किताबें भी।
8. रोज की तरह दिनांक 25 जुलाई 2014 को भी दिनेष के पिता और मां scrap Mica चुनने जंगल गयी है।
9. हम दोनों इसी गांव के भुला टोला गये जितेन्द्र भुला पिता अनिल भूला से मिलने। पर घर में ताला लगा पाया। उनके पिता अनिल भूला पड़ोसी के घर के बाहर शराब पीकर मदहोष सोया पड़ा था। अगल-बगल से पता चला कि उनकी मां और जितेन्द्र जंगल गया है ढिबरा चुनने। कब घर आयेगा नहीं मालूम।

10. इस टोला के बच्चों के लिए स्कूल बना है। लेकिन, जब से स्कूल बना है, आज तक खुला ही नहीं है। यहां 2 षिक्षक प्रतिनियुक्त हैं 1. सुरेष यादव-ढाब और 2. मुरली मेहता-बेहराडीह। लेकिन, उक्त दोनों षिक्षक महीने में एक-आध बार आते हैं और लौटकर चले जाते हैं। यह जानकारी उसी गांव के निर्मलिया देवी, पतिया मोसेमात , चंदन, नरेष और सनोज कुमार ने दिया।
11. इस टोला में अर्द्धनिर्मित स्कूल, किचेन शेड और शौचालय तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता भी नहीं है। फोटो देखकर आसानी से आकलन किया जा सकता है।
12.  जिला समाज कल्याण पदाधिकारी, कोडरमा के पत्रांक 07 दिनांक 24.06.2014 के द्वारा बंगलूरू से वापस लाये गये बच्चों के अभिभावक को इंदिरा आवास देने का निदेष दिया गया है। यह पत्र हमें बंगाखलार के पंचायत सेवक के यहां देखने को मिला। लेकिन, उस पत्र में बच्चा और अभिभावक को जो पता दिया गया है उसमें अधिकांष पता गलत है। मैंने सही पता देकर फिलहाल पंचायत सेवक को तो सुलझा दिया है परंतु प्रषासन की गैर जिम्मेदारना हरकत अपनाने का यह सबूत अपने आप में काफी है।  पत्र संलग्न है।
13. नावाडीह के मुकेष हांसदा पिता चारू हांसदा से मिलने ताजा स्थिति जानने उनका घर गये। हांसदा घर पर ही अपने बारी में कुछ काम करते पाये गये। उनसे पुछा गया कि स्कूल जाते हो तो उन्होंने कहा-भैया स्कूल यहां है ही नहीं, तो जायेंगे कहां? उन्होंने हमलोगों को ले जाकर अपना स्कूल दिखाया, देखकर भौचक रह गये। इस विधालय में 2 षिक्षक प्रतिनियुक्त हैं 1. यादव और 2. मनोज प्र0 यादव। लेकिन, स्कूल कभी खुलता नहीं है। बनकर तैयार भी नहीं हुआ और पैसा खत्म हो चुका है। इसी गांव के फागू हांसदा, महेष हांसदा, उमेष हांसदा, संजय हांसदा, वार्ड सदस्य तालो हांसदा, महेन्द्र, मुकेष आदि ने बताया कि यहां आंगनबाड़ी है और स्कूल। स्कूल है भी तो किस काम का? जब खुलता ही नहीं है। आवाज खूब उठाये पर कुछ हो तब तो? थक-हारकर बैठ गये हैं। स्कूल खोलवा दीजिए, बड़ी कृपा होगी।
14. अहराई गांव के कृष्णा कुमार पिता षिबू हेम्ब्रोम से मिलने उनका घर पहुंचा। उस दिन वह घर पर ही मिला। लेकिन, हर रोज वह रोड़ निर्माण में काम करने जाता है। स्कूल नहीं जाने के सवाल पर उन्होंने बताया कि स्कूल खुलेगा तब जायेंगे। स्कूल में 2 टीचर है लेकिन, उनका आने-जाने, खुलने-बंद होने कुछ पता ही नहीं चलता है। कृष्णा का नाम 0 प्रा0 वि0 लेवड़ा में नामांकित है। 2 दिन स्कूल गया भी, स्कूल में 2-3 बच्चे मात्र पहुंचा था। लेकिन, वहां उसे ड्रेस मिला और ही किताब। तीसरा दिन स्कूल गया तो स्कूल बंद मिला। उस दिन से कृष्णा स्कूल जाना बंद कर दिया और रोड़ निर्माण में दिहाड़ी खटने लगा। जहां उन्हें प्रतिदिन 200 रूपये मिलता है।
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15. कृष्णा कुमार के पिता षिबू हेम्ब्रोम जंगल से लकड़ी लाकर खाट आदि बनाकर बेचते हैं और किसी तरह गुजारा करते हैं। कृष्णा की मां  शांति हांसदा ने बताया कि इनके पिता अक्सर बीमार रहते हैं। ईलाज के पैसे नहीं हैं। बेटे काम नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या?
16. फिर हमदोनों कोबराबूट गांव के पवन कुमार पिता मानिक तुरी से मिला। तबीयत खराब रहने के कारण आज वह ढिबरा चुनने नहीं गया था। घर पर उनकी छोटी बहन और पवन था। मां और पिताजी अपने अन्य बेटे-बेटियों के साथ ढिबरा चुनने जंगल गये हुए हैं। 
17. पवन कुमार ने पहले तो बताया कि हम स्कूल जाते हैं। लेकिन, बाद में बोला कि स्कूल में पढ़ाई होती ही नहीं, तो वहां जाने से क्या फायदा? इन्हें स्कूल की ओर से पिछले साल ही किताब और ड्रैस मिला है। फिलहाल ड्रैस तो इनके पास नहीं है पर किताबें हैं।
18. दिनेष बोलने में काफी तेज है और समझदार भी। उन्होंने अपने घर की हालत बताया। फोटो दिखाया और कहा मेरे बड़े भाई लक्ष्मण तुरी उम्र 14 मेरे तरह ही काम करने दिल्ली गया था। पिछले 2 साल से दिल्ली में लापता है। नावाडीह के सुरेष तुरी उन्हें लेकर दिल्ली गया था। आज तक लौटा है और कुछ अता-पता है।
19. पुलिस-प्रषासन में रपट लिखवाने के सवाल पर उन्होंने बताया कि पिताजी यदि एक दिन ढिबरा चुनने नहीं जायेंगे तो हमलोग खायेंगे क्या? पुलिस-प्रषासन थोड़े हमारे भाई को ढुंढ़कर ला देंगे। आपलोग थे कि हमलोग 9 लोग बंगलौर से वापस लौट आये।
20. कमौवेष अन्य बच्चों की भी हालत इसी तरह है। इस इलाके में स्कूलों आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन मात्र कागज पर हो रहा है। proper monitoring के अभाव में और जिला प्रषासन राजनेताओं के उपेक्षापूर्ण रवैयों के कारण डोमचांच के जंगल क्षेत्र में बसे गांवों बच्चों की स्थिति आज ऐसी बनी हुई है।
21. क्षेत्र में व्यापक जागरूकता, संगठन निर्माण और एडभोकेषी कार्यक्रम चलाने की सख्त जरूरत है।
22. इस क्षेत्र बच्चों की स्थिति भी सुधरेगा, उनके भी अच्छे दिन आएंगे इस आषा उम्मीद में ........... !!!! 
Indramani Sahu,
Secretary, Koderma