Saturday, August 2, 2014

डोमचांच के जंगल क्षेत्र में बसे गांवों में व्यापक जागरूकता, संगठन निर्माण और एडभोकेषी कार्यक्रम चलाने की सख्त जरूरत

पिछले दिनों बंगलोर से मुक्त कराये गये 9 बच्चों को पुर्नवासित किये जाने एवं बाल व्यापार से जुड़े मामलों को लेकर हमारा follow up जारी है। कुछ तथ्य इस प्रकार हैः
 Ø जिला कोडरमा में बाल कल्याण समिति दिनांक 09.03.2013 से सक्रिय नहीं है। गठन हेतु संबंधित पदाधिकारियों/उच्चाधिकारियों को ज्ञांपन सौंपा गया है।
 Ø  बहुत दवाब बनाने के बाद जिला प्रषासन की टीम बंगलोर से बच्चों को लेकर 7 मई, 2014 को लौटी।
 Ø  वापस लाये गये सभी बच्चों का पुनर्वास किये गये बगैर अभिभावकों को सौंप दिया गया।
 Ø  बच्चों का पुनर्वास की व्यवस्था नहीं होने से संभावना है कि ये बच्चे फिर बाहर काम करने चले जायें। जिससे उनका बचपन और बाल अधिकारों का खतरा है। इसी को ध्यान में रखते हुए एवं बच्चों को प्रति जिला प्रषासन को जबाबदेह बनाने हेतु कई बार संबंधित पदाधिकारियों (जिला समाज कल्याण पदाधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी, बाल संरक्षण पदाधिकारी, डोमचांच थाना, उपायुक्त कोडरमा) से वार्ता की गयी। कोई विषेष पहल सक्रियता नहीं होते देख 12 मई, 2014 को सूचनाधिकार का प्रयोग किया गया।
 Ø  सूचनाधिकार का आवेदन जिला समाज कल्याण पदाधिकारी को मिलते ही उनमें तिलमिलाहट आई और उन्होंने दिनांक 15 मई, 2014 को उपायुक्त, कोडरमा से भेंट कर सूचनाधिकार के तहत पूछे गये प्रष्नों को लेकर वार्ता किया। 
 Ø  फिर आनन-फानन में 21 मई, 2014 को उपायुक्त एवं जिला समाज कल्याण पदाधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर से डोमचांच के बीडीओ को पत्रांक 265/21 मई, 2014 के द्वारा निदेष जारी किया कि बंगलोर से वापस लाये गये बच्चों के माता-पिता को सरकारी लाभ से लाभान्वित करें। वहीं पत्रांक 266/21 मई, 2014 के द्वारा जिला षिक्षा अधीक्षक, कोडरमा को निदेष दिया कि बंगलोर से वापस लाये गये बाल मजदूरों को सरकारी स्कूलों में नामांकन करायें ताकि षिक्षा अधिकार कानून का पालन किया जा सके। 
 Ø  हमलोग फिर जिला षिक्षा अधीक्षक एवं प्रखंड विकास पदाधिकारी से जानकारी मांगें हैं कि उन्होंने उक्त आदेष/निदेष के आलोक में क्या कदम उठाया। बच्चें कौन सा स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं, बच्चे नियमित स्कूल रहे हैं या नहीं, बच्चों के माता-पिता को किस योजनाओं सरकारी लाभ से जोड़ा गया।
 Ø  डोमचांच थाना में प्रतिनियुक्त बाल संरक्षण पदाधिकारी से भी जानकारी मांगे हैं कि उन्होंने इस मसले को लेकर क्या-क्या कदम उठाया है।
लेकिन, जब मैं दिनांक 25 जुलाई, 2014 को अपने सहयोगी साथी तुलसी कुमार साव के साथ बच्चों से मिलने गांव गया और वर्तमान हालात टटोलने की कोषिष की तो मामला कुछ और ही निकला। जो कुछ इस प्रकार हैः संबंधित तथ्यों पर आधारित फोटोग्राफ्स संलग्न है।
1.  दिनेष कुमार तुरी पिता सोमर तुरी का नामांकन 0 0 वि0 तुरियाटोला, बंगाखलार, डोमचांच में 5वीं कक्षा में है। पिछले 9 माह से दिनेष बंगलौर में कार्य कर रहा था, समर्पण एवं जिला प्रषासन के सहयोग से उन्हें 7 मई 2014 को वापस लाया गया है। लेकिन, ताज्जूब की बात यह है कि विधालय रजिस्टर के मुताबिक दिनेष विधालय में एक दिन भी गैर हाजिर नहीं है। रोज का हाजिरी बना पाया गया। 

2. फिलहाल, दिनेष के जांघ में घाव हो गया है। जब से बंगलौर से आया है स्कूल नहीं गया है और ही उन्हें स्कूल जाने के लिए किसी ने प्रेरित किया है। एसएमसी के अध्यक्ष श्री रामदेव तुरी ने कहा कि हम इन्हें रोज स्कूल जाने के लिए बोलते हैं पर सुनता ही नहीं है।
3. उक्त विधालय में कुल नामांकित बच्चों की संख्या 91 हैं पर दिनांक 25 जुलाई 2014 को उपस्थिति 30 बच्चों की थी। जिसमें ज्यादातर बच्चे आंगनबाड़ी  के थे। फोटो देखकर भी आकलन किया जा सकता है।
4. उक्त विधालय का दूसरा कक्ष लकड़ी से भरा पाया गया। 
5. उक्त विधालय को 6 साल पहले अतिरिक्त कमरा निर्माण के लिए आवंटन भेजा गया है। Building बना भी पर आधा-अधूरा और आवंटन की राषि समाप्त हो गया। Building कब पूरा होगा और कब से पढ़ाई शुरू होगा इसकी खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं। फोटो देखकर भी आकलन किया जा सकता है। 
6.  आज तक BEEO या अन्य कोई अधिकारी का आगमन इस विधालय में नहीं हुआ है।
7. दिनेष के पास स्कूल ड्रेस है और ही किताबें स्कूल जायें भी तो कैसे? लेकिन, षिक्षक बताते हैं कि हमने उसे ड्रेस दिया है और किताबें भी।
8. रोज की तरह दिनांक 25 जुलाई 2014 को भी दिनेष के पिता और मां scrap Mica चुनने जंगल गयी है।
9. हम दोनों इसी गांव के भुला टोला गये जितेन्द्र भुला पिता अनिल भूला से मिलने। पर घर में ताला लगा पाया। उनके पिता अनिल भूला पड़ोसी के घर के बाहर शराब पीकर मदहोष सोया पड़ा था। अगल-बगल से पता चला कि उनकी मां और जितेन्द्र जंगल गया है ढिबरा चुनने। कब घर आयेगा नहीं मालूम।

10. इस टोला के बच्चों के लिए स्कूल बना है। लेकिन, जब से स्कूल बना है, आज तक खुला ही नहीं है। यहां 2 षिक्षक प्रतिनियुक्त हैं 1. सुरेष यादव-ढाब और 2. मुरली मेहता-बेहराडीह। लेकिन, उक्त दोनों षिक्षक महीने में एक-आध बार आते हैं और लौटकर चले जाते हैं। यह जानकारी उसी गांव के निर्मलिया देवी, पतिया मोसेमात , चंदन, नरेष और सनोज कुमार ने दिया।
11. इस टोला में अर्द्धनिर्मित स्कूल, किचेन शेड और शौचालय तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता भी नहीं है। फोटो देखकर आसानी से आकलन किया जा सकता है।
12.  जिला समाज कल्याण पदाधिकारी, कोडरमा के पत्रांक 07 दिनांक 24.06.2014 के द्वारा बंगलूरू से वापस लाये गये बच्चों के अभिभावक को इंदिरा आवास देने का निदेष दिया गया है। यह पत्र हमें बंगाखलार के पंचायत सेवक के यहां देखने को मिला। लेकिन, उस पत्र में बच्चा और अभिभावक को जो पता दिया गया है उसमें अधिकांष पता गलत है। मैंने सही पता देकर फिलहाल पंचायत सेवक को तो सुलझा दिया है परंतु प्रषासन की गैर जिम्मेदारना हरकत अपनाने का यह सबूत अपने आप में काफी है।  पत्र संलग्न है।
13. नावाडीह के मुकेष हांसदा पिता चारू हांसदा से मिलने ताजा स्थिति जानने उनका घर गये। हांसदा घर पर ही अपने बारी में कुछ काम करते पाये गये। उनसे पुछा गया कि स्कूल जाते हो तो उन्होंने कहा-भैया स्कूल यहां है ही नहीं, तो जायेंगे कहां? उन्होंने हमलोगों को ले जाकर अपना स्कूल दिखाया, देखकर भौचक रह गये। इस विधालय में 2 षिक्षक प्रतिनियुक्त हैं 1. यादव और 2. मनोज प्र0 यादव। लेकिन, स्कूल कभी खुलता नहीं है। बनकर तैयार भी नहीं हुआ और पैसा खत्म हो चुका है। इसी गांव के फागू हांसदा, महेष हांसदा, उमेष हांसदा, संजय हांसदा, वार्ड सदस्य तालो हांसदा, महेन्द्र, मुकेष आदि ने बताया कि यहां आंगनबाड़ी है और स्कूल। स्कूल है भी तो किस काम का? जब खुलता ही नहीं है। आवाज खूब उठाये पर कुछ हो तब तो? थक-हारकर बैठ गये हैं। स्कूल खोलवा दीजिए, बड़ी कृपा होगी।
14. अहराई गांव के कृष्णा कुमार पिता षिबू हेम्ब्रोम से मिलने उनका घर पहुंचा। उस दिन वह घर पर ही मिला। लेकिन, हर रोज वह रोड़ निर्माण में काम करने जाता है। स्कूल नहीं जाने के सवाल पर उन्होंने बताया कि स्कूल खुलेगा तब जायेंगे। स्कूल में 2 टीचर है लेकिन, उनका आने-जाने, खुलने-बंद होने कुछ पता ही नहीं चलता है। कृष्णा का नाम 0 प्रा0 वि0 लेवड़ा में नामांकित है। 2 दिन स्कूल गया भी, स्कूल में 2-3 बच्चे मात्र पहुंचा था। लेकिन, वहां उसे ड्रेस मिला और ही किताब। तीसरा दिन स्कूल गया तो स्कूल बंद मिला। उस दिन से कृष्णा स्कूल जाना बंद कर दिया और रोड़ निर्माण में दिहाड़ी खटने लगा। जहां उन्हें प्रतिदिन 200 रूपये मिलता है।
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15. कृष्णा कुमार के पिता षिबू हेम्ब्रोम जंगल से लकड़ी लाकर खाट आदि बनाकर बेचते हैं और किसी तरह गुजारा करते हैं। कृष्णा की मां  शांति हांसदा ने बताया कि इनके पिता अक्सर बीमार रहते हैं। ईलाज के पैसे नहीं हैं। बेटे काम नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या?
16. फिर हमदोनों कोबराबूट गांव के पवन कुमार पिता मानिक तुरी से मिला। तबीयत खराब रहने के कारण आज वह ढिबरा चुनने नहीं गया था। घर पर उनकी छोटी बहन और पवन था। मां और पिताजी अपने अन्य बेटे-बेटियों के साथ ढिबरा चुनने जंगल गये हुए हैं। 
17. पवन कुमार ने पहले तो बताया कि हम स्कूल जाते हैं। लेकिन, बाद में बोला कि स्कूल में पढ़ाई होती ही नहीं, तो वहां जाने से क्या फायदा? इन्हें स्कूल की ओर से पिछले साल ही किताब और ड्रैस मिला है। फिलहाल ड्रैस तो इनके पास नहीं है पर किताबें हैं।
18. दिनेष बोलने में काफी तेज है और समझदार भी। उन्होंने अपने घर की हालत बताया। फोटो दिखाया और कहा मेरे बड़े भाई लक्ष्मण तुरी उम्र 14 मेरे तरह ही काम करने दिल्ली गया था। पिछले 2 साल से दिल्ली में लापता है। नावाडीह के सुरेष तुरी उन्हें लेकर दिल्ली गया था। आज तक लौटा है और कुछ अता-पता है।
19. पुलिस-प्रषासन में रपट लिखवाने के सवाल पर उन्होंने बताया कि पिताजी यदि एक दिन ढिबरा चुनने नहीं जायेंगे तो हमलोग खायेंगे क्या? पुलिस-प्रषासन थोड़े हमारे भाई को ढुंढ़कर ला देंगे। आपलोग थे कि हमलोग 9 लोग बंगलौर से वापस लौट आये।
20. कमौवेष अन्य बच्चों की भी हालत इसी तरह है। इस इलाके में स्कूलों आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन मात्र कागज पर हो रहा है। proper monitoring के अभाव में और जिला प्रषासन राजनेताओं के उपेक्षापूर्ण रवैयों के कारण डोमचांच के जंगल क्षेत्र में बसे गांवों बच्चों की स्थिति आज ऐसी बनी हुई है।
21. क्षेत्र में व्यापक जागरूकता, संगठन निर्माण और एडभोकेषी कार्यक्रम चलाने की सख्त जरूरत है।
22. इस क्षेत्र बच्चों की स्थिति भी सुधरेगा, उनके भी अच्छे दिन आएंगे इस आषा उम्मीद में ........... !!!! 
Indramani Sahu,
Secretary, Koderma


                                                                                                                                                               

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