Wednesday, February 22, 2017

माइका-मांइस क्षेत्र के बच्चे अब स्कूल में .......समुदाय एवं संस्था के लिए खुषी की बात........

डोमचांच के माइका-मांइस क्षेत्र के बच्चों को स्कूल से जुड़ा न होना बड़ी समस्या नहीं है बल्कि, बड़ी समस्या है स्थायी आजीविका की व्यवस्था करना। आर्थिक तंगी के कारण अभिभावक चाह कर भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते हैं। नियमित रूप से बच्चों को स्कूल भेजना उनके लिए प्राथमिकता नहीं है। प्राथमिकता है दो जून की रोटी का जुगाड़ किसी तरह कर लेना। जिंदगी दांव पर लगाकर छोटे-बड़े खदानों में घुसकर माईका (स्क्रेप) निकालना इनका रोज का डियूटी है। उस पर भी सरकार या जिला प्रषासन की ओर से उन्हें परेषान किया जाता है। 
जब हम यह सुनते हैं कि देष में गरीबी, अषिक्षा, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, मंहगाई में कमी आ रही है और संचार सुविधा, पानी, बिजली, यातायात की सुविधाओं में सुधार हो रहा है। यह बात तब कोरी कल्पना सी लगती है तब, जब हम डोमचांच के माइका-माइंस एरिया को देखते हैं। सरकार की नीतियां व कानून इस इलाके के लोगों के लिए फिलहाल किसी काम का नहीं है। पंचायत को स्थानीय मसलों को लेकर गंभीर और जवाबदेह होने की जरूरत है। 
इस इलाकों में दलालों व मानव तस्करों की भी अपनी चलाकी खूब चलती है। लोभ-लालच एवं प्रलोभन में ऐसे गरीब मां-बाप को फंसने में देरी नहीं लगती है। इस इलाके से पहले से भी बच्चे महानगरों में जाते रहे हैं। संस्था द्वारा चाइल्डलाइन का भी संचालन किया जा रहा है। इससे अब दलालों या मानव तस्करों में खौफ हैं। बच्चे व अभिभावव भी अब बाल तस्करी और बाल व्यापार के मुद्दों को समझने लगे हैं। किषोरी क्लब बनने एवं महिला मंडल के गठन होने से किषोरियां एवं महिलाएं मुखर हो रही हैं। उनके अंदर चुनौतियों का सामना करने का हिम्मत और आत्मविष्वास बढ़ रहा है। अपने उपर होने वाले शोषण से मुक्ति के लिए संधर्ष की प्रक्रिया शुरू कर दिया है। इस प्रक्रिया को ओर तेज किया जाना है। तभी, इस इलाके में शोषण से लोग मुक्त होंगे और स्थायी विकास का जड़ मजबूत भी। जैसे-जैसे लोग संगठित हो रहे हैं, जागरूकता का परिचय दे रहे हैं चीजों व जमाने को समझ रहे हैं वैसे-वैसे क्षेत्र में बदलाव भी दिख रहा है। अब ढिबरा छोड़कर किषोरियां व बच्चे अब स्कूल जाना प्रारंभ कर दिया है। यह यहां के समुदाय एवं संस्था के लिए खुषी की बात है। 

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