Thursday, May 8, 2014

फिर दुबारा बंगलूरू या किसी अन्य महानगर नहीं जाना है। यदि अच्छा स्कूल में हमारा नाम लिखा दिया जाये तो हम जरूर पढेंगे-डोमचांच के 9 बच्चों का byan.

कोडरमाः  बेंगलूरू के कोल्स पार्क इलाके में पानी-पूरी बेचने वाले झारखंड के कुल 12 बच्चों को लेकर कोडरमा जिला प्रषासन की टीम लौटी  उक्त 12 बच्चों में से 9 बच्चा कोडरमा के डोमचांच प्रखंड के विभिन्न गांवों के हैं। शेष 2 बच्चा गिरिडीह और 1 बच्चा जामताड़ा जिला का है। सभी बच्चों की उम्र 12 से 20 साल के बीच है। अपना इलाका और जिला लौटने के बाद सभी बच्चे काफी खुष नजर आ रहे हैं। बच्चे फिर दुबारा बंगलूरू या किसी अन्य महानगर नहीं जाना जा रहे है। बच्चों का कहना है कि मां-पिताजी यदि पढायेंगे तो जरूर पढेंगे। कुछ बच्चों ने कहा कि पढ़ाई का कुछ साधन ही नहीं है तो पढ़ेंगे कहां? यदि अच्छा स्कूल में हमारा नाम लिखा दिया जायेगा तो हम जरूर पढेंगे।
बच्चों से प्रतिदिन 10 से 12 घंटे काम लिया जा रहा था। बताया जाता है कि सभी बच्चो वहां बंधुवा मजदूरी की तरह कार्य कर रहे थे। इन्हें रहने के लिए एक छोटा सा कमरा दिया गया था। वह भी बिना किसी सुविधा के। दिन भर कार्य करने के बाद ये लड़के जमीन पर ही सो जाया करते थे। कुछ बच्चों ने बताया कि पानी-पूरी कम बेचने या हिसाब में गड़बड़ी होने पर मालिक द्वारा मारपीट भी किया जाता था।
कोडरमा में बाल अधिकारों के मुद्दे पर काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था समर्पण ने सभी तरह के तथ्यों का संकलन करते हुए जिला प्रषासन को सूचित किया और लगातार जिला प्रषासन पर दवाब बनाकर बच्चों को सकुषल वापसी के लिए बाध्य किया। एक सप्ताह के बाद जिला प्रषासन इस मामले में गंभीर हुए और टीम गठित कर बच्चों को लाने के लिए बेंगलूरू भेजा गया। जो कल लौटी है।

जिला प्रषासन की ओर से यदि इन बच्चों का पुनर्वास की व्यवस्था तरीके से नहीं किया गया तो संभावना है कि फिर ये बच्चे बाहर काम करने चले जायें। जिससे उनका बचपन और बाल अधिकारों का हनन होगा।  बच्चों के संबंधित गांव डोमचांच के बीहड़ जंगलों के बीच बसा हुआ है। जहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। लगभग सभी विधालयों व आंगनबाड़ी की स्थिति काफी लचर है। उन इलाकों में जिला प्रषासन की ओर से स्कूलों या आंगनबाड़ी केंद्रों का माॅनिटरिंग नहीं होती है। कई स्कूलों में मध्यान भोजन 6-6 माह से बंद है। परिवार में गरीबी, लचारी और भुखमरी के कारणों के साथ-साथ स्कूलों की लापरवाही से भी बच्चा बाहर काम करने जाने को बाध्य हुए हैं।  डोमचांच के जंगलों में बसे दर्जनों गांवों के बच्चों के भविष्य को लेकर जिला प्रषासन को खासे पहल करना चाहिए। samarpan प्रषासन को अपेक्षित सहयोग देने के लिए तैयार हैं।

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